भारत एचआईवी/एड्स उन्मूलन की दिशा में लगातार कठिन प्रयास कर रहा है। एड्स नामक इस भयानक बीमारी ने देश की एक बड़ी आबादी को अपने प्रभाव में जकड़ रखा है। एचआईवी से संबंधित मामलों को पूर्ण रूप से ख़त्म किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं एवं पिछले कुछ वर्षों में भारत ने इस प्रयास में अंशतः सफलता भी पाई है। भारत को “पूर्णतः एड्स मुक्त” होने में अभी काफी समय लगेगा क्योंकि अभी भी देश में 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच के लगभग 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं। यह आँकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर आता है।
एचआईवी आकलन 2012 के अनुसार भारतीय युवाओं में वार्षिक आधार पर एड्स के नए मामलों में 57% की कमी आई है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत किये गए एड्स के रोकथाम संबंधी विभिन्न उपायों एवं नीतियों का ही यह प्रभाव था कि 2000 में एड्स प्रभावित लोगों की जो संख्या 2.74 लाख थी, वह 2011 में घटकर 1.16 लाख हो गई। 2001 में एड्स प्रभावित लोगों में 0.41% युवा थे जो प्रतिशत 2011 में घटकर 0.27 का हो गया। 2000 में एड्स प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 24.1 लाख थी जो 2011 में घटकर 20.9 लाख रह गई। एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के प्रयोग में आने के बाद एड्स से मरने वालों की संख्या में कमी आई। 2007 से 2011 के बीच एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में वार्षिक आधार पर 29% की कमी आई। ऐसा अनुमान है कि 2011 तक लगभग 1.5 लाख लोगों को एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) की मदद से बचाया जा चुका है।
भारत ने एचआईवी संबंधी आँकड़े देने वाले इन व्यापक स्रोतों का इस्तेमाल एड्स संबंधी कार्यक्रमों के निर्धारण में किया है ताकि एचआईवी की रोकथाम एवं इसके उपचार के उपायों से होने वाले प्रभावों की जानकारी प्राप्त की जा सके।
एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (यूएनएड्स) के अनुमान यह दिखाते हैं कि पूरा विश्व एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने का प्रयास कर रहा है ताकि इस महामारी को जड़ से मिटाया जा सके। विगत दस वर्षों में इस दिशा में सराहनीय प्रयास किये गए हैं, फिर भी आज हमारे सामने यह एक विकट समस्या है।

एड्स एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (एचआईवी) संक्रमण के बाद होती है। एचआईवी संक्रमण के पश्चात मानवीय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। एड्स का पूर्ण रूप से उपचार अभी तक संभव नहीं हो सका है। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति में एड्स की पहचान संभावित लक्षणों के दिखने के पश्चात ही हो पाती है। रोग रोकथाम एवं निवारण केंद्र द्वारा एड्स के संभावित लक्षण बताये गए हैं। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति, जो किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं है, में एड्स के लक्षणों की जाँच विशेष रक्त जाँच (cd4+ कोशिका गणना) के आधार पर की जा सकती है। एचआईवी संक्रमण का अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्ति एड्स से भी पीड़ित हो। एड्स के लक्षण दिखने में 8 से 10 वर्ष तक का समय लग सकता है। एड्स की पुष्टि चिकित्सकों द्वारा जाँच के पश्चात ही की जा सकती है। एचआईवी संक्रमण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को इस हद तक कम कर देता है कि इसके बाद शरीर अन्य संक्रमणों से लड़ पाने में अक्षम हो जाता है। इस प्रकार के संक्रमण को "अवसरवादी" संक्रमण कहा जाता है क्योंकि ये अवसर पाकर कमजोर हो रहे प्रतिरक्षा प्रणाली पर हावी हो जाते हैं जो बाद में एक बीमारी का रूप ग्रहण कर लेती है। एड्स प्रभावित लोगों में हुए कई संक्रमण, जो गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं या जानलेवा हो सकते हैं, को शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नियंत्रित करती है। एड्स शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को इतना दुष्प्रभावित कर देता है कि इस गंभीर बीमारी की रोकथाम या इसका उपचार करना आवश्यक हो जाता है।
एचआईवी/एड्स से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस) शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं को संक्रमित कर देता है।
एचआईवी कई तरीकों से फैल सकता है।
पूरे विश्व में लगभग 3.53 करोड़ लोग एचआईवी से प्रभावित हैं।
एचआईवी दुनिया की प्रमुख संक्रामक एवं जानलेवा बीमारी है।
एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) शरीर में एचआईवी वायरस को फैलने से रोकता है।
वर्ष 2012 के अंत तक निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के लगभग 1 करोड़ एचआईवी पॉजिटिव लोगों को एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) उपलब्ध करवाई जा चुकी है।
विश्व के लगभग 33.4 लाख बच्चे एचआईवी से प्रभावित हैं।
मां से बच्चे में एचआईवी के संक्रमण को रोका जा सकता है।
एचआईवी प्रभावित लोगों में सामान्य लोगों की अपेक्षा क्षय रोग (टी.बी) होने का खतरा अधिक होता है।
एचआईवी के फैलने की प्रवृति
एचआईवी/एड्स से निपटने का एकमात्र उपाय है - इसकी रोकथाम। भारत की 99 प्रतिशत जनसंख्या अभी एड्स से मुक्त है, बाकि एक प्रतिशत जनसंख्या में इसके फैलने की प्रवृति के आधार पर इस महामारी की रोकथाम एवं इस पर नियंत्रण करने संबंधी नीतियाँ बनाईं जा रही हैं।
एचआईवी/एड्स संबंधी मामलों में जागरूक बनें
एचआईवी संक्रमण को रोकने का एकमात्र तरीका है - लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाए। लोगों को इसकी उत्पत्ति एवं प्रसार के बारे में बताया जाए ताकि लोग इस महामारी के दुष्प्रभाव से बच सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य जन-जन तक एचआईवी/एड्स एवं इसके रोकथाम से संबंधित सभी सूचनाएँ एवं जानकारियाँ पहुँचाना है।
भारत में एड्स के मामले
भारत में एचआईवी का पहला मामला 1986 में सामने आया। इसके पश्चात यह पूरे देश भर में तेजी से फैल गया एवं जल्द-ही इसके 135 और मामले सामने आये जिसमें 14 एड्स2 के मामले थे। यहाँ एचआईवी/एड्स के ज्यादातर मामले यौनकर्मियों में पाए गए हैं। इस दिशा में सरकार ने पहला कदम यह उठाया कि अलग-अलह जगहों पर जाँच केन्द्रों की स्थापना की गई। इन केन्द्रों का कार्य जाँच करने के साथ-साथ ब्लड बैंकों की क्रियाविधियों का संचालन करना था। बाद में उसी वर्ष देश में एड्स संबंधी आँकड़ों के विश्लेषण, रक्त जाँच संबंधी विवरणों एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों में समन्वय के उद्देश्य से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
हालांकि 1990 की शुरुआत में एचआईवी के मामलों में अचानक वृद्धि दर्ज की गई, जिसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य देश में एचआईवी एवं एड्स के रोकथाम एवं नियंत्रण संबंधी नीतियाँ तैयार करना, उसका कार्यान्वयन एवं परिवीक्षण करना है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के क्रियान्वयन संबंधी अधिकार भी इसी संगठन को प्राप्त हैं। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यक्रम प्रबंधन हेतु प्रशासनिक एवं तकनीकी आधार तैयार किये गए एवं राज्यों व सात केंद्र-शासित प्रदेशों में एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की गई।
जन-संपर्क अभियान
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा टेलीविज़न एवं रेडियो पर नियमित रूप से इस विषय से संबंधित प्रसारण आयोजित किये जाते हैं जिसमें कंडोम के उपयोग, एड्स प्रभावित लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, समेकित परामर्श एवं परीक्षण केंद्र, एचआईवी/एड्स के प्रति भ्रांतियां, यौन संक्रमित रोगों के उपचार, युवाओं के एचआईवी संक्रमित होने की ज्यादा आशंका, एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी एवं रक्त आदान-प्रदान संबंधी सुरक्षा इत्यादि पर विस्तार से चर्चा की जाती है।
विश्व एड्स दिवस
प्रत्येक वर्ष 1 दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। इस दिन को विश्वभर के लोग एड्स विरोधी अभियान में अपनी एकजुटता दिखाते हैं एवं एड्स प्रभावित लोगों को हरसंभव सहयोग देने का आश्वासन देते हैं। इस दिन को एड्स से मरने वाले लोगों के स्मरणोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

भारत सरकार ने 1992 में एड्स विरोधी अभियान के रूप में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (प्रथम चरण) की शुरुआत की जिसका उद्देश्य देश में एचआईवी संक्रमण के प्रसार एवं एड्स के प्रभाव को कम करना था ताकि एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी लाई जा सके एवं इसे वृहत स्तर पर फैलने से रोका जा सके। इस कार्यक्रम को वर्ष 1992 से 1999 के बीच लागू किया गया एवं इसके क्रियान्वयन के लिए 84 मिलियन डॉलर का खर्च निर्धारित किया गया। इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन एवं इसके प्रबंधन को और मजबूत करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण बोर्ड का गठन किया गया एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना की गई।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के दूसरे चरण की शुरुआत 1999 में हुई। इस बार यह पूर्णतः केंद्र प्रायोजित योजना थी जिसे एड्स नियंत्रण संस्था के माध्यम से 32 राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों एवं अहमदाबाद, चेन्नई एवं मुंबई के नगर निगमों में लागू किया गया।
इस कार्यक्रम के तीसरे चरण को वर्ष 2007 से 2012 के बीच लागू किया गया जिसका उद्देश्य भारत में इस महामारी को और अधिक फैलने से रोकना था। इन सारे प्रयासों की मदद से ही भारत विगत दस वर्षों में एचआईवी संक्रमण के प्रसार को घटाने में सफल हो सका है एवं एचआईवी के नए मामलों में भी कमी देखने को मिली है।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम - चौथा चरण एवं "एड्स मुक्त भारत" अभियान
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के चौथे चरण (2012-2017) से संबंधित योजना एवं नीतियों का निर्धारण कई हितधारकों से परामर्श लेने के बाद विस्तृत नियोजन प्रक्रिया के पश्चात किया गया।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम - IV का उद्देश्य सतर्क एवं निर्धारित समेकित प्रक्रिया के द्वारा इन पांच वर्षों में एचआईवी संक्रमण के मामलों को तेजी से घटाना एवं देश में इस महामारी से निपटने संबंधी प्रक्रिया को और बल प्रदान करना है। इसका मुख्य उद्देश्य एचआईवी के नए मामलों में कमी लाना एवं एचआईवी/एड्स प्रभावित लोगों को आवश्यक उपचार एवं सुविधाएँ उपलब्ध करवाना है।
इस कार्यक्रम की मुख्य नीतियाँ हैं - एचआईवी/एड्स के रोकथाम संबंधी, प्रक्रिया में तेजी लाना एवं उसे बल प्रदान करना एचआईवी/एड्स संबंधी विषयों पर शिक्षा एवं परामर्श सुविधाएँ उपलब्ध करवाना, सामरिक सूचना प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करना एवं राष्ट्रीय, राज्य, जिले एवं निचले स्तर पर इसका क्रियान्वयन करना।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम नीति निर्धारण में विभिन्न समुदायों की भागीदारी एवं स्वामित्व निर्धारित करने का एक उत्कृष्ठ उदहारण है। यही वजह रही कि यह कार्यक्रम देश के प्रत्येक क्षेत्र में क्रियान्वित हो सका एवं जरूरतमंद लोगों को इसका लाभ मिल सका। सिविल सोसाइटी एवं सामुदायिक संचालन, सेवाओं को सभी तक पहुँचाने, कलंक एवं भेदभाव संबंधी मुद्दों को पहचानने में एचआईवी/एड्स प्रभावित लोगों के समाज ने इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में भरपूर सहयोग प्रदान किया।
महामारी से निपटने की यह नीति एवं कार्यक्रम से संबंधित आँकड़ों का विश्लेषण यह दिखाता है कि इस महामारी को रोकने का लक्ष्य हासिल किया जा रहा है एवं राष्ट्रीय स्तर पर निश्चित समय सीमा के अन्दर ही इस महामारी को जड़ से मिटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

यद्यपि एड्स एक लाइलाज बीमारी है, फिर भी एड्स प्रभावित व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है। एचआईवी संक्रमित होना जीवन का अंत नहीं हैं क्योंकि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति भी सही चिकित्सीय मदद एवं सहयोग से लम्बे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकता है। एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी अगर समय से शुरू कर दी जाए तो इस बीमारी के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसके फलस्वरूप शरीर की प्रतिरोधक क्षमता फिर से बढ़ जाती है, बीमारी का बढ़ना बंद हो जाता है एवं अन्य अवसरवादी संक्रमणों के फैलने की आशंका भी घट जाती है। इस तरह एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी एड्स के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। अतः एचआईवी/एड्स प्रभावित व्यक्ति भी स्वस्थ एवं दीर्घजीवन जी सकता है।
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी का सही से पालन एवं क्रियान्वयन
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी का सही से पालन एवं क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है। इसके क्रियान्वयन में थोड़ी-सी भी चूक इसके प्रभाव को कम या खत्म कर सकती है जो बाद में अत्यंत घातक सिद्ध हो सकती है।
-
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी की उपलब्धता
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी उन सभी के लिए उपलब्ध है जिन्हें इसकी आवश्यकता है। लोक स्वास्थ्य सुविधाओं के अंतर्गत यह अनिवार्य कर दिया गया है कि सभी एचआईवी/एड्स प्रभावित व्यक्तियों को एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए। संक्रमित महिलाओं एवं संक्रमित बच्चों के उपचार के लिए विशेष प्रावधान किये गए हैं।
-
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी कब दी जाती है?
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी संक्रमण के स्तर की जाँच करने के पश्चात दिया जाता है। एचआईवी/एड्स प्रभावित व्यक्ति जिनका स्तर 200 CD4 (श्वेत रक्त कोशिका/mm3) से कम हो जाता है उन्हें यह थेरेपी दी जाती है। ऐसे व्यक्ति जिनका स्तर 200 से 350 CD4 के बीच होता है एवं उनमें एड्स के लक्षण दिखाई देते हैं, उन्हें भी यह थेरेपी दी जाती है। ऐसे व्यक्ति जिनका स्तर 350 CD4 से ज्यादा हो एवं भले ही उनमें एड्स के लक्षण नहीं दिखाई दें, फिर भी उन्हें यह थेरेपी दी जाती है।
-
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी केंद्र कहाँ स्थित हैं?
-
एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी केंद्र चिकित्सा महाविद्यालयों, जिला चिकित्सालयों एवं स्वास्थ्य सेवा, सहयोग व उपचार सेवाएँ प्रदान करने वाले लाभ-निरपेक्ष धर्मार्थ संस्थानों में स्थित हैं ताकि ज्यादा-से-ज्यादा लोग इस थेरेपी का लाभ उठा सकें। एचआईवी/एड्स प्रभावित व्यक्ति इन केन्द्रों पर जाकर उपचार एवं अन्य स्वास्थ्य सुविधाएँ प्राप्त कर सकते हैं। यह केंद्र लोगों को सामुदायिक सेवा केन्द्रों के माध्यम से उपचार से संबंधित सूचनाएँ, जानकारियाँ एवं परामर्श सेवाएँ प्रदान करता है।
-
भारत के एड्स विरोधी अभियान में द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय भागीदारों का सहयोग
एचआईवी/एड्स के रोकथाम एवं इसपर नियंत्रण हेतु वैश्विक एवं स्थानीय दोनों ही स्तरों पर संसाधनों, तकनीकों के प्रबंधन एवं सम्मिलित प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु अत्यधिक राशि की आवश्यकता होती है। भारत में कई अंतर्राष्ट्रीय संस्था एचआईवी/एड्स उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के साथ मिलकर काम कर रही है जहाँ वे अपने तकनीकी विशेषज्ञ एवं वित्तीय सुविधाएँ संगठन को उपलब्ध करवाते हैं। संस्थानों की यह सहभागिता एचआईवी/एड्स पर भारत सरकार के कार्यक्रमों की तरह ही अत्यंत पुरानी है।
- एड्स/एचआईवी पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम
- अंतरराष्ट्रीय एड्स सेवा संगठन परिषद
- विश्व स्वास्थ्य संगठन
- बिल एवं मेलिंडा गेट्स संस्थान - एड्स पहल के लिए आह्वान
- संयुक्त राष्ट्र बाल कोष
- अंतर्राष्ट्रीय एड्स संगठन
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
- संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को)
- अंतर्राष्ट्रीय एड्स अर्थशास्त्रीय नेटवर्क
- विश्व बैंक

रेड रिबन एक्सप्रेस कार्यक्रम के अंतर्गत 80 लाख लोग आते हैं। इसके अंतर्गत 81,000 निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को एचआईवी/एड्स के मुद्दों पर प्रशिक्षित किया गया ताकि वे गाँव-गाँव में जाकर लोगों को इस बारे में जागरूक कर सकें। इसके अलावा नेहरु युवा केंद्र संगठन एवं अन्य युवा संगठनों की मदद से स्कूल नहीं जा सकने वाले युवाओं को भी इस कार्यक्रम का उद्देश्य बताया गया एवं उन्हें एड्स संबंधित जानकारियाँ दी गई। विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं, प्राधिकृत सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायक नर्सों एवं पंचायती राज संस्था के सदस्यों को एचआईवी/एड्स संबंधित विषयों पर प्रशिक्षित किया गया।
भारत के विभिन्न राज्यों में एचआईवी/एड्स प्रभावित लोगों के लिए उपलब्ध सुविधा-सेवा केंद्र
- समेकित परामर्श एवं जाँच केंद्र (आईसीटीसी)
- एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी केंद्र (70KB)
- यौन संक्रमित रोगों के उपचार के लिए विशेष केंद्र (312 KB)
- सामुदायिक सेवा केंद्र (313 KB)
- एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी केंद्र का आपसी समन्वय (227 KB)
- राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन प्रमाणित ब्लड बैंक (850 KB)
- सीडी 4 मशीन (CD4) (28 KB)
- नजदीकी केंद्र(145 KB)

भारत ने एचआईवी/एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी लाने के लिए सहस्राब्दि विकास लक्ष्य निर्धारित किये हैं एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत भारी संख्या में सहभागियों को सम्मिलित कर देश ने इस दिशा में आगे कदम बढ़ाना भी शुरू कर दिया है।
अपने अधिकार पहचानें
भारतीय संविधान में सभी भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं, समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ़ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार, संवैधानिक अधिकार
अतः यह मायने नहीं रखता है कि कोई व्यक्ति एचआईवी से प्रभावित है या नहीं। ये मौलिक अधिकार सभी को प्राप्त हैं। हमें उनके अधिकारों का सम्मान करते हुए उन्हें भी वही मान-सम्मान देना चाहिए जो हम अन्य सामान्य व्यक्तियों को देते है ताकि एचआईवी/एड्स प्रभावित लोग भी सामान्य जीवन जी सकें।
एचआईवी/एड्स मामलों से संबंधित तीन मुख्य अधिकार:
-
एचआईवी परीक्षण से पहले सूचना दिए जाने का अधिकार
-
एचआईवी एक गंभीर बीमारी है एवं इसके परिणाम भी घातक होते हैं। अतः यह अनिवार्य है कि किसी भी व्यक्ति का एचआईवी परीक्षण करने या इसके आंकड़ों से संबद्ध शोध करने से पहले संबद्ध व्यक्ति इसके बारे में जानकारी दी जाए।
-
-
गोपनीयता का अधिकार
-
अगर कोई व्यक्ति चाहे तो वह अपने एचआईवी/एड्स से संबंधित स्थिति को गोपनीय रख सकता है। एचआईवी/एड्स प्रभावित लोग अपने अधिकारों के लिए न्यायालय में जाने से संकोच करते हैं। उन्हें यह डर रहता है कि कहीं लोग उनके एचआईवी/एड्स प्रभावित होने के बारे में जान न जाएँ। हालांकि वे एक छद्मनाम की मदद से अपनी पहचान गोपनीय रख सकते हैं ताकि एचआईवी/एड्स प्रभावित लोगों को भी बिना किसी सामाजिक बहिष्कार या भेदभाव के न्याय मिल सके।
-
-
भेदभाव के खिलाफ़ अधिकार
-
समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। यह उसी तरह है जैसे किसी प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का अधिकार सभी को प्राप्त होता है। हमें एचआईवी/एड्स प्रभावितलोगों के साथ भी सामान्य व्यवहार करना चाहए तभी एड्स विरोधी अभियान को बल मिल सकेगा।
अगर आपकी जानकारी के बिना आपका एचआईवी परीक्षण करवाया गया है या आपकी गोपनीयता का उल्लंघन किया है या आपको किसी भी अधिकार से वंचित किया गया है तो आप इसके खिलाफ न्यायालय में शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। इस संबंध में कानून आपकी मदद के लिए हमेशा तैयार है।
-
इस पर और अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ संपर्क करें:
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन समष्टि अधिवक्ता एचआईवी/एड्स इकाई
मुंबई :- टेलीफोन नंबर: 022-22875482/3, ईमेल: aidslaw[at]lawyerscollective[dot]org
नई दिल्ली :- टेलीफोन नंबर: 011-24377101/2, ईमेल: aidslaw1[at]lawyerscollective[dot]org
बैंगलोर :- टेलीफोन नंबर: 080-41239130/1, ईमेल: aidslaw2[at]lawyerscollective[dot]org
संबंधित लिंक
- हॉटलाइन एवं हेल्पलाइन
- रोजगार के अवसर
- सेवा एवं सहयोग
- उपचार
- एचआईवी नियंत्रण हेतु नागर समाज संगठन
- एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) केन्द्रों की सूची
- निधि और व्यय
- राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के अधिकारियों की संपर्क सूची
- एचआईवी से संबंधित आँकड़े
- रोकथाम संबंधी उपाय
- सुरक्षित यौन संबंध की जानकारी
- एचआईवी/एड्स प्रशनोत्तरी
- सभा, सम्मेलन, एवं कार्यशाला